आलिया भट्ट और रणवीर सिंह की फिल्म आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. अगर आप इसे देखने का प्लान बना रहे हैं तो रिव्यू पढ़ दीजिए.

करण जौहर जब कोई फिल्म डायरेक्ट करते हैं तो उससे उम्मीदें बढ़ जाती हैं क्योंकि करण फिल्म इंडस्ट्री के बड़े फिल्ममेकर्स में से एक हैं. दर्शकों की नब्ज पकड़ना जानते हैं लेकिन क्या इस बार करण वो मैजिक चला पाए जिसके लिए वो जाने जाते हैं. क्या ये फिल्म करण जौहर की पुरानी फिल्मों के बराबर है. इसका जवाब आपको पूरा रिव्यू पढ़कर ही समझ आएगा.

कहानी
फिल्म का नाम है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी ये प्रेम कहानी है भी लेकिन ये कहानी है इंटरवल के बाद शुरू होती है. रॉकी यानि रणवीर सिंह दिल्ली का लड़का है, मस्तमौला, अमीर परिवार से है पैसे की कमी नहीं है लेकिन ज्यादा इंग्लिश विंग्लिश नहीं आती देसी है. रानी यानी आलिया भट्ट एक न्यूज एंकर है. एक बंगाली परिवार है जिनका कल्चर अलग है. रॉकी और रानी मिलते हैं प्यार हो जाता है. लेकिन परिवार अलग हैं तो एक दूसरे के परिवार को समझने के लिए एक दूसरे के घर तीन तीन महीने रहते हैं. क्या वो एक दूसरे के परिवार का दिल जीत पाते हैं ये कहानी है जिसे सेकेंड हाफ में दिखाया गया है. फर्स्ट हाफ में रणवीर के दादा धर्मेंद्र और आलिया की दादी शबाना आजमी की प्रेम कहानी दिखाई गई है जिसकी वजह से रॉकी और रानी मिलते हैं. 

कैसी है फिल्म
ये करण जौहर की महान फिल्मों में से एक नहीं है लेकिन ये खराब फिल्म भी नहीं है. ये एक ठीक ठाक फिल्म है. एंटरटेनिंग फिल्म है लेकिन करण जौहर का नाम जब कहीं जुड़ जाता है तो उम्मीद ज्यादा हो जाता है लेकिन ये फिल्म वैसी उम्मीदों को पूरा नहीं करती. फर्स्ट हाफ में मेन कहानी शुरू ही नहीं होती औऱ ये फिल्म का माइनस प्वाइंट है. कई बार लगता है कि कुछ भी चल रहा है. बीच बीच में रणवीर सिंह एंटरटेन करते हैं. कुछ डायलॉग अच्छे हैं तो कुछ बचकाने, जिन्हें सुनकर लगता है कि भाई किसने लिखे हैं. सेकेंड हाफ में फिल्म एक इमोशनल टर्न लेती हैं. फिल्म में कई मुद्दों पर बात होती है. जैसे क्या घर की औरतों को अपने हिसाब से जिंदगी जीने की इजाजत नहीं है. क्या वजन ज्यादा है तो लड़की को ताने ही देते रहेंगे और सेकेंड हाफ में आपको लगता है कि करण ने फिल्म में कुछ तो डाला है. लेकिन फिल्म करीब पौने तीन घंटे की है और एक वक्त बाद झेल लगने लगती है. फिल्म को आराम से छोटा किया जा सकता है. रॉकी और रानी की कहानी को फर्स्ट हाफ में ही आगे बढ़ाना चाहिए था. फिल्म में बैक ग्राउंड में पुराने गाने बजते हैं जो कई जगह अच्छे लगते हैं तो कई जगह बचकाने भी लगते हैं. फिल्म में आलिया और रणवीर के बीच कई किसिंग सीन डाले गए हैं और वो जबरदस्ती के लगते हैं. कुल मिलाकर ये करण जौहर की शानदार फिल्मों में एक नहीं है. हां देखी जरूर जा सकती है. 

एक्टिंग
रणवीर सिंह फिल्म की जान हैं. वो आपको हंसाते भी हैं रुलाते भी हैं लेकिन यहां लगता है कि हम रॉकी को नहीं रणवीर सिंह को देख रहे हैं क्योंकि उनका ऐसा अंदाज हम अक्सर सोशल मीडिया पर देखते रहते हैं. तो ये फिल्म एक सीख भी है कि सोशल मीडिया पर मौजदूगी जरा लिमिटेड होनी चाहिए या फिर दर्शक को कुछ ऐसा दीजिए जो उसने ना देखा हो लेकिन तब भी रणवीर ही फिल्म को आगे ला जाते हैं. आलिया भट्ट की एक्टिंग अच्छी है लेकिन इससे बहुत बेहतर काम वो कर चुकी हैं. जया बच्चन रणवीर की दादी बनी हैं. परिवार की मुखिया हैं और उन्हें देखकर उनकी पैपराजी से होने वाली नोकझोंक याद आ जाती है क्योंकि यहां भी वो काफी सख्त मिजाज में नजर आती हैं. धर्मेंद्र का रोल कम है और मुझे लगता है उनके जैसे सीनियर एक्टर को बर्बाद ही किया गया है. शबाना आजमी का रोल कोई और भी कर सकता था. उनके जैसी सीनियर और कमाल की एक्ट्रेस के लिए ये रोल नहीं था. 

डायरेक्शन
करण जौहर का डायरेक्शन एवरेज है. स्क्रीनप्ले पर और मेहनत की जानी चाहिए थी. फिल्म को और छोटा किया जाना चाहिए था. कई जगह कुछ सीन बेवकूफी भरे लगते हैं. उन्हें हटाया जा सकता था. कई बार लगता है कहानी कहां जा रही है. सेकेंड हाफ को अगर थोड़ा और बड़ा किया जाता तो इमोशनल सीन्स और मैसेज देने वाले सीन्स को और बड़ा करके फर्स्ट हाफ को छोटा किया जाता तो फिल्म शानदार बन सकती थी. 

म्यूजिक
प्रीतम का म्यूजिक अच्छा है. बैकग्राउंड स्कोर ज्यादातर जगहों पर अच्छा लगता है. पुराने गाने एक मजेदार फील देते हैं.

कुल मिलाकर ये एक ठीक ठाक वन टाइम वॉच फिल्म है. इसे कऱण जौहर अपनी शानदार फिल्मों की लिस्ट में खुद भी नहीं रखना चाहेंगे लेकिन फिर भी ये फिल्म देखी जा सकती है.



 

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