नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एन आर सी ) सबूत नही मिलने पर 40 लाख लोग बाहरी पाये गये। भारत की नागरिकता के दस्तावेज इनके पास नही है लेकिन वोटर लिस्ट में इनके नाम पायेगे। एनआरसी के संयोजक प्रतीक हजेला ने बताया की असम में अल्पसंख्यक बाहुल जनपदों में धारा 144 लागू की गई है।

भारतीय राजनीत में कांग्रेस और भाजपा इस मामले में आमने- सामने है। हमारे अनुसार सरकार को यह कदम बहुत पहले ही उठाना चाहिए था। इसे देश हित में देखना चाहिए। राजनैतिक द्रष्टि से नही देखना चाहिए। तीन साल से असम में इस मामले पर जांच चल रही थी। इन बांग्लादेशियो के असम का नागरिक होने के दावों को स्वीकार नही किया गया। यह संख्या कोई छोटी संख्या नही है।असम की आबादी के लगभग यह 15 प्रतिशत की संख्या है।
सुप्रीमकोर्ट ने 2015 में निर्देश दिया था तब एनआरसी ऐसे लोगो से भारतीय नागरिक होने के सबूत मांगे पाकिस्तान और  बांग्लादेश से आकर रहने बालो में एक बड़ी संख्या मुस्लिमों की है लेकिन इसमे हिन्दू प्रवासी भी शामिल है। जन लोगो की बजह से राज्य की जनसंख्या में बदलाव आया है।

इस संवेदनशील मुददे को राजनैतिक पार्टियां वोट की राजनीत के अनुसार देख रही है।संसद में भी कल हंगामा हुआ।सरकार की तरह से यह कहा गया की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में काम हुआ और इन लोगो को नागरिकता साबित करने का पूरा मौका दिया जायेगा। डरने की जरूरत नही उन्हें जेल या शिविर में नही रखा जायेगा और न ही उन्हें देश से मिकाला जायेगा।सभी को नागरिकता साबित करने का पूरा मौका दिया जायेगा। यह बयान असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का आने के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने असम भाजपा सरकार पर आरोप लगाया की एनआरसी के काम ढ़िलाई दिखाई गई  सरकार को इस पैदा हुए संकट को निपटने में तेजी दिखानी चाहिए। अभी भी काफी गुंजाइश है केन्द्र और असम सरकार को काफी कुछ करना होगा लोगो में असुरक्षा बढ़ रही है।

संसद भवन में कल गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में साफ कहा की यह अंतिम सूचि नही है। जो लोग छूट गए उन्हें पूरा मौका अपील करने का मिलेगा सभी लोग राष्ट्रीय हितों को भी ध्यान में रखे। राजनीत की नजर से न देखे देश हित में भी देखना चाहिए।

आज की सत्ता न्यूज उत्तर प्रदेश के सह-संपादक / प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा का संपादकीय लेख.......
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