आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया

 

सनत जैन

लोकसभा के चुनाव अप्रैल अथवा मई माह में होना संभावित है। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र तैयार कर रहे हैं। जिनमें वोट बटोरने के लिए बड़ी-बड़ी लोकलुभावन घोषणाएं होंगी। केंद्र सरकार ने भी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए चुनाव के ठीक 4 माह पूर्व लोकलुभावन घोषणाएं करना शुरू कर दी हैं। 1 फरवरी को केंद्र सरकार बजट प्रस्तुत करने जा रही है। इस बजट प्रस्ताव में सरकार लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कई घोषणाएं करेंगी, यह माना जा रहा है।

वित्त मंत्रालय के जो आंकड़े जारी हुए हैं। उसमें 1 अप्रैल से 30 नवंबर तक सरकार की आय केवल 8 लाख करोड़ रुपए थी। इसी अवधि में सरकार ने 16 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं। केंद्र की मोदी सरकार पिछले 4 वर्षों से आर्थिक स्थिति बेहतर होने और विकास बड़ी तेजी से होने की बात कह रही है। जीएसटी और नोटबंदी के समय भी केंद्र सरकार ने बड़े बड़े दावे किए थे, किंतु जो स्थितियां देखने को मिल रही हैं। वह दावों से विपरीत है। रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड से सरकार ने 3 लाख करोड रुपए लेने का जो प्रयास किया था पूर्व गवर्नर ऊर्जित पटेल ने उसे सही नहीं माना और इस्तीफा देकर वह चल दिए। इसके बाद सरकार ने रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर शशिकांत दास को बैठाया है वह सरकार को रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड से किस तरह से पैसा दिया जाए, इसका रास्ता निकाल रहे हैं। वर्तमान स्थिति में इतना तो तय है कि सरकार की आमदनी अठन्नी है और खर्च रुपैया हो रहा है। सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ने से भुगतान और कर्ज का संकट बढ़ेगा।
लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बजट में आयकर की सीमा बढ़ाने, किसानों को प्रति हेक्टेयर नगद राशि देने, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को ढाई हजार रुपए प्रति माह दिए जाने, मनरेगा के बजट में 60 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि करने, जीएसटी में विशेष छूट दिए जाने, शक्कर मिलों को अनुदान दिए जाने सहित दर्जनों योजनाएं इस बजट सत्र में सरकार घोषित कर सकती हैं। इसके लिए सरकार के पास पैसा कहां से आएगा? इसको लेकर अनिश्चिय की स्थिति सारे देश में बनी हुई है। सरकार का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ रहा है। आर्थिक स्थिति भी वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार अनियंत्रित होती जा रही हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वादे किए थे। उन वादों का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। स्मार्ट सिटी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना थी। पिछले साढे 4 वर्षों में केंद्र सरकार चयनित स्मार्ट सिटी को 100 करोड़ रुपए प्रति वर्ष भी नहीं दे पाई। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। नोटबंदी के बाद देश में आर्थिक संकट पैदा हुआ है। कई उद्योग धंधे बंद हुए हैं। बैंकों का एनपीए भी इसी बीच 2 लाख करोड़ से बढ़कर लगभग 10 लाख करोड़ पर पहुंच गया है। कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में ऐसा कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है जिससे सरकार की आय में वृद्धि हो। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यदि सरकार और नई-नई घोषणाएं करती है तो ऐसी स्थिति में सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट भी खड़ा होगा। सरकार जो कह रही है, जमीनी हकीकत उसके विपरीत है। यही प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे बड़ा संकट है। आर्थिक संकट सबसे बड़ा संकट होता है। इसके आगे सारे मुद्दे और संकट बेमानी होते हैं। मंदिर मुद्दे को लेकर आज देश में कोई विशेष सक्रियता, हिंदुओं के बीच में भी देखने को नहीं मिल रही है। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के कोई प्रयास कारगर नहीं हो रहे हैं। बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के कारण लोगों का नियमित जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। रोजाना की जरूरतें आम आदमी पूरी नहीं कर पा रहा है। ऐसी स्थिति में उसकी नाराजी भी बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए देश की आर्थिक स्थिति चिंता का विषय है। लोकसभा चुनाव में इसका असर पड़ना तय है। वहीं चुनाव जीतने के लिए विपक्षी राजनीतिक दल भी मतदाताओं को लुभाने के लिए लोकलुभावन वादे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। ऐसी स्थिति में मतदाताओं को भी चुनाव के समय राजनीतिक दलों से यह पूछना चाहिए, कि वह अपने वादे कैसे पूरे करेंगे। वहीं चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को भी राजनीतिक दलों को इस बात के लिए कानूनन बाध्य करना होगा, कि वह जो वादे जनता से करते हैं उसके पूरे करने की जिम्मेदारी भी उनकी होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक सरकारी खजाने का उपयोग चुनाव जीतने के लिए तथा जनता के साथ विश्वासघात के लिए होगा, जो किसी भी स्थिति में बेहतर नहीं है। बड़े-बूढ़े भी कह गए है जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए। कर्ज लेकर कुछ दिन ही घी पिया जा सकता है। उसके बाद जब कर्ज भी नहीं मिलेगा तो खाओगे क्या। राजनैतिक दलों को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं एक्स्प्रेस मीडिया सर्विस के ग्रुप एडिटर हैं। उक्त लेख उन्हीं के फेसबुक वाल से लिया गया है।)

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