आंकड़ों का सच . . .इछावर नहीं है भाजपा का गड़।


राजेश शर्मा इछावर                                      


मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के गृहजिला और विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की लोकसभा सीट के तहत आने वाली इछावर विधानसभा सीट को कागज़ पर आंकड़े भले ही भाजपा का गड़ निरुपित करें लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ ओर ही बयां करती है। अलग-अलग कारणों से
चुनाव मे एनवक्त पर निर्मित हालात भाजपा के भाल पर जीत का सेहरा बाँधते चले गए जिसे आंकड़ों के बाजीगर एंव भ्रमित भाजपाईयों ने अपना गड़ बताना शुरु कर दिया।
 नतीजा यह हुआ की
 इछावर विधानसभा सीट पर भाजपा की लगातार जीत के पीछे छिपे असली मूल कारण दबकर ही रह गए और उभरकर  छद्म वजह के चलते इछावर विधानसभा क्षेत्र  कुछ अर्से बाद भाजपा का कथित गड़ कहलाने लगा।
 इस भ्रम को कांग्रेस ने सन् 2008 के चुनाव मे उस वक्त तोड़ डाला जब लंबे अर्से के बाद हुई आमने-सामने की टक्कर मे
कांग्रेस के शैलेन्द्र पटेल ने राजस्व मंत्री एंव भाजपा प्रत्याशी करणसिंह वर्मा को पराजय का स्वाद चखाया। ज्ञातव्य रहे गड़ के इसी भ्रम को सन् 1980 मे कांग्रेस प्रत्याशी स्व हरिचरण वर्मा ने भी आमने सामने की टक्कर मे तोड़ा था तब उन्होंने जनता पार्टी के विधायक नारायण प्रसाद गुप्ता को चारों खाने चित कर दिया था। सन् 1977 मे जनता पार्टी के नारायणप्रसाद गुप्ता ने इमरजेंसी की लहर पर सवार होकर नैया पार की थी। इसके पूर्व इछावर के एक दशक तक का गड़ का पैमाना जनसंघ और नगरपालिका के इर्दगिर्द घुमता था।

इछावर की जमीनी हकीकत बयां करती है कि यहाँ के हर चुनावों मे कोई न कोई फेक्टर ऐसा जरुर चला जिसने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया ओर उसका लाभ सीधे सीधे भाजपा को मिलता रहा।
  सन् 1977 मे आपातकाल , सन् 1990 मे कांग्रेस के बाहरी अंजान उम्मीदवार ईश्वरसिंह चौहान , सन् 1993 मे (अजीज कुरैशी )हिंदू-मुस्लिमवाद , सन् 1998 मे कांग्रेस के बागी प्रत्याशी बलवीर तोमर (निर्दलीय) फिर से सन् 2003 मे कांग्रेस के बागी (निर्दलीय) बलवीर तोमर , सन् 2008 मे कांग्रेस के बागी(निर्दलीय,फेक्टर अभय मेहता ने भाजपा के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त किया और कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ता रहा। "इछावर विधानसभा भाजपा का गड़ नहीं है'   इसका सबसे बड़ा उदाहरण ओर क्या होगा की 1998 मे तो कांग्रेस के बागी (निर्दलीय) बलवीर तोमर से भाजपा हारते-हारते, बाल-बाल बच गई।

कागज़ पर लगातार दर्ज होती जीत औरआँकड़ों के बाजीगरी नुस्खे से इछावर विधानसभा सीट भाजपा का गड़ कहलाने लगी । जबकि हकीकत यह है की जब-जब भी आमने सामने की टक्कर हुई और "वाद" का "विवाद" न हुआ तो भाजपा को मूँह की ही खाना पड़ी और सीट भाजपा से छीनकर कर कांग्रेस ने अपनी झोली मे डाली। इछावर के चुनावी इतिहास पर बारीकी से नज़र डाली जाए तो साबित यही होता है कि कहीं से कहीं तक भी यह क्षेत्र  भाजपा का गढ़ नहीं रहा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह सीहोर के गृह जिला सीहोर और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के गृह लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली इछावर विधानसभा सीट को गड़ मानना सिर्फ़ भाजपा की खुशफहमी ही समझा जा सकता है।
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