पटना,  : पांच राज्यों से गुरजकर ही दिल्ली की राजगद्दी का रास्ता अपनाना होगा। इस बार देश का राजा कौन होगा, मतदाताओं के गर्भ में है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जमीन और आसमान का फर्क है। गांव-जवार के लोग नरेन्द्र मोदी के शिवाये किसी की बात नहीं सुनना चाहते थे मगर आज के युवा बड़ा ही मायूस और कुछ बताने से भाग रहे हैं। इस बार देश में ंसमाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय  लोक दल तीनों एक प्लेफार्म आने से उतर प्रदेश में भाजपा को काफी मेहनत करना पड़ेगा। उतर प्रदेश में लोकसभा सीटों की कुल संख्या 80 है तो महाराष्ट्र में पिछले चुनाव में 41 सीट जीकर दिल्ली फतह किया था। वहीं एनसीपी को 5 तो कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी। इस बार शिवसेना अपना मतभेद समाप्त किया है वहीं सबकी नजर बंगाल पर टिकी हुई है। बड़े-बड़े भाजपाई नेता का कहना है कि बंगाल से 42 सीट जीतकर उतर प्रदेश की भरपाई कर सकते हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस केे सुप्रीमो सुश्री ममता बनर्जी ने जोर लगाया दिया है कि यहां पर भाजपा का खाता नहीं खुले।
बिहार में भी इस बार भाजपा 17, जनता दल यूनाइटेड 17 एवं  लोक जनशक्ति पार्टी 6 सीट मिलेगी। अब देखना है कि बिहार में एनडीए और  नरेन्द्र मोदी की लहर क्या गुल खिलाती है। वहीं तमिलनाडू में 39 और पुदुचेरी में एक सीट, तमिलनाडू में डीएमके और कांग्रेस एक साथ उतरने की तैयारी में है। उतर प्रदेश का 80, महाराष्ट्र का 48, प. बंगाल का 42, बिहार 40 एवं तमिलनाडू 41 यही पांचों राज्य के मतदाता मिलकर 249 सांसद जीताकर संसद में भेजते हैं।
वहीं लोकतंत्र के महापर्व शुरू होते ही चुनाव जंग में उतरने वाले महारथियों को अग्नि-परीक्षा शुरू होगी। इस बार मतदाता महासंग्राम में प्रतिनिधियों को भगवान किस तरह का वरदान देता है क्योंकि लोकतंत्र में जो भी सांसद जीतकर जायें मगर आम आदमी को नहीं देखने पर पांच साल के बाद लोकतंत्र का सबसे बड़ा भगवान मतदाता उसे अच्छा या खराब सबक सिखाने के लिए अपना पांच ऊंगली पांजा पांच साल में एक बार जरूर इस्तेमाल करते हैं। चाहे जनप्रतिनिधि लाख उडऩ खटोला और फाईव स्टार होटल में मजा चखते हों और गरीब मतदाता खेत-खलिहान में रहकर किसी तरह अपना जीविका चलाते हैं। उस पर अगर ध्यान दिया रहता तो 70 साल में देश श्गांव खेत और खलिहानों की दशा और दिशा अगल होती।
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