पटना : लोग अक्सर ऐसा मानते हैं कि अल्कोहल और धूम्रपान का असर उनके फेफडों और लिवर पर पडता है। लेकिन ये दोनो ही चीजे जितना हम समझते हैं उससे कही अधिक नुकसान पहुंचाती हैं।

डॉक्टरो का कहना है कि सिगरेट और अल्कोहल का इस्तेमाल उन सबसे महत्वपूर्ण कारणों में शामिल हो चुके हैं जिनके चलते युवाओं और बुजुगों में किडनी फेलियर की समस्या तेजी से बढ रही है।

पारस एचएम आरआई  हॉस्पिटल विभागाध्यक्ष सह   सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. शशि कुमार    का कहना है बचाव हमेशा इलाज से बेहतर विकल्प होता है। अल्कोहल और धूम्रपान का इस्तेमाल यह साबित करता है कि लोग अपनी सेहत को लेकर कितने लापरवाह हैं। ये दोनो उत्पाद किडनी को किसी भी अन्य चीज से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। 40-60 वर्ष की उम्र वाले पुरुष सबसे अधिक प्रभावित हैं। किडनी फेलियर का अन्य आम कारण है डायबीटीज, जो कि मेटाबोलिक डिसॉर्डर के चलते होता है।

डॉ. शशि कहते हैं कि पटना में हर साल कम से कम 700-800 मरीजों को डायलिसिस की जरूरत होती है,जबकि अन्य 500 लोगों को हर साल ट्रांसप्लांट की जरूरत पडती है।

क्रॉनिक किडनी डिजीज एक ऐसी स्थिति है जब आपकी किडनी पूरी तरह से अपनी कार्यक्षमता खो देती है। शुरुआती दौर में,अधिकतर लोगों को लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन जब शरीर के अंदर से कचरा बाहर नहीं निकल पाता है तब किडनी की बीमारी गम्भीर रूप ले लेती है। किडनी की समस्या शुरुआती दौर में ठीक करने के लिए डॉक्टर मरीज को खास आहार सम्बंधी कडे दिशा निर्देश देते हैं और नियमित व्यायाम के साथ उन्हे आवश्यक दवाएं भी सही तरीके से लेनी होती हैं। यद्यपि किडनी फेलियर के मामले में डॉक्टर मरीज को डायलिसिस अथवा किडनी ट्रांसप्लांट कराने की सलाह देते हैं। डायलिसिस के दौरान शरीर के भीतर से अतिरिक्त कचरा और तरल बाहर निकल जाता है और रक्त की सफाई हो जाती है।

किडनी से जुडी बीमारियों में बढोत्तरी के पीछे जीवनशैली सम्बंधी कारक भी जिम्मेदार हैं, जिसमें आहार सम्बंधी हमारी गलत आदतें भी अपनी भूमिका निभाती हैं। अनुपयुक्त आहारए शारीरिक सक्रियता की कमी और धूम्रपान जैसी आदतें भी हमारी किडनी पर बुरा असर डालती हैं। हमारे आहार और जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव भी हमारी सेहत और किडनी की स्थिति पर बडा असर डालते हैं।

इसके अतिरिक्त डायबीटीज और मोटापे का सम्बंध किडनी की बीमारियोँ से हैय दोनों ही स्थितियों में जटिल मेटाबोलिक असामान्यताएं विकसित हो जाती हैं। मोटे लोगों को अक्सर डायबीटीज, हाइपरटेंशनए लिपिड सम्बंधी असामान्यता भी हो जाती है, जो कि किडनी सम्बंधी बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार कारक होते हैं। सामान्य रूप से मोटापा और डायबीटीज के कारण हाइपर-फिल्टरेशनकी समस्या हो हो जाती है, जिसके कारण किडनी को सामान्य से अधिक कार्य करना पडता है और इससे किडनी की बीमारियों का खतरा अथवा समस्या के तेजी से बढने का खतरा बढ जा जाता है। खास बात यह है कि अब किडनी के बीमारियों के मामले में उम्र का भी कोई भेद नही है, आजकल किशोर बच्चे भी इस बीमारी से समान रूप से प्रभावित हो रहे हैं। यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं जिनसे आप किडनी संबंधी समस्याओं से बचाव कर सकते हैं।  अगर आप डायबिटिक हैं तो अपने ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखने का प्रयास करें। अगर डायबीटीज सही ढंग से नियंत्रण में रहती है तो किडनी की बीमारियाँ विकसित होने का खतरा नहीं रहता।  ब्लड प्रेशर की निगरानी और इस पर नियंत्रण भी बेहद जरूरी हैए इसके लिए नकम कम मात्रा में इस्तेमाल करें और दवाएँ लेते रहें। सामान्य ब्लड प्रेशर से किडनी सम्बंधी बीमारियां विकसित होने का खतरा कम रहता है। स्वस्थ्य जीवनशैली अपनाने हर रोज 2-3 लीटर पानी पीने, मोटापे से बचे रहकर और नियमित व्यायाम करके आप किडनी की समस्या से बच सकते हैं।


हमारे शरीर के मह्त्वपूर्ण अंगो को सुरक्षित रखने के लिए कडे नियम पालन की जरूरत होती है। हर किसी को अस्वस्थ्य आहार के इस्तेमाल पर नियंत्रण रखना चाहिए। कठोर व्यायाम और साथ में बहुत सारा पानी पीना काफी फायदेमंद होता है। वे मरीज जो महंगे डायलिसिस का खर्च नहीं उठा सकते हैं, उनके लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में प्रधान मंत्री नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम की शुरुआत की है। इस योजना के तहत, मरीज दोनो तरह के डायलिसिस की सुविधा ले सकता ह, जिससे किडनी को ठीक स्थिति में रखा जा सकता है।




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