पटना :विश्व ग्लूकोमा दिवस हर साल मार्च माह में मनाया जाता है। इस बार भी 10 से 16 मार्च तक यह दिवस मनाया जाएगा। इसी कडी में गुरुवार को संजीवनी आई हाॅस्पिल एवं रिसर्च इंस्टीटयूट,पटना में विश्व ग्लूकोमा दिवस मनाया गया इस मैकें पर आंखों के प्रेशर का जांच किया गया। इसमें 42 मरीजों का आंखों के प्रेशर का जांच किया गया। प्रख्यात नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार सिंह ने बताया कि इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को काली मोतिया, ग्लूकोमा नाम की बीमारी के लिए जागरूक करना है। इस बीमार में आखों में बनने वाले द्रव्य के बहाव में रुकावट होने के कारण आंखों का प्रेशर बढ़ जाता है। जिससे आंखों की नस सुख जाती है और अंधापन आ जाता है।  ग्लूकोमा के कई प्रकार होते हैं, जिनमें सबसे आम वृद्धावस्था का मोतियाबिंद है, जो 50 से अधिक आयुवाले लोगों में विकसित होता है। यह रोग अनुवांशिक भी होता है साथ ही यह समस्या बच्चों में जन्मजात भी हो सकती है। कई बार आपको ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। ऐसे में आपको नियमित जांच से ही आंखों में ग्लूकोमा के बारे में पता चल सकता है। डॉ. सुनील ने मरीजों को बताया कि ग्लूकोमा का समय रहते इलाज कराना चाहिए। समय रहते यदि ग्लूकोमा के लक्षणों को पहचान लिया जाय तो मरीज को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा यानी काला मोतिया भारत में अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। समय रहते ध्यान दिया जाए तो अंधेपन का शिकार होने से बचा जा सकता है। इसमें सिर दर्द से परेशान व्यक्ति को रोशनी में रंगीन छल्ला दिखाई देना, सुबह या शाम में धुंधला दिखाई पड़ना आम बात है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी में आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है। सही समय पर इलाज शुरू नहीं किया गया तो दोबारा रोशनी नहीं आती है। इस बीमारी में आंख में दबाव बढ़ने से ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है। ऑप्टिक नर्व आंख को दिमाग से जोड़ती है, जिससे हम देख पाते हैं।


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