निघासन-खीरी। जिले के संरक्षित सरकारी वनों को सुरक्षित बचा पाने में वन विभागीय अमला नाकामयाब साबित हो रहा हैं। प्रशासनिक आदेशों को धता दे, लकड़ी तस्कर धड़ल्ले के साथ सरकारी जंगलों में हरे भरे पेड़ो की अंधाधुंध कटाई कर रहे है। वैसे तो पूरे जनपद में दर्जनों  गाँव सरकारी जंगलों को काटकर बसे हुए हैं,यही नही इन क्षेत्रों में ज्यादातर हिंसक वन्यजीवों का बसेरा हैं, बावजूद इसके विभाग अवैध कटाई पर कार्यवाही करने में दिलचस्पी नही दिखा रहा है। जिसके कारण जंगलों में रहने वाले शेर,चीतल आदि गाँवों की और रुख कर रहे हैं।
हरियाली पर लगा बट्टा…
दरअसल बेलरायां वन का क्षेत्रफल 16121 हेक्टेयर हैं।इसमें सात वन चौकियां हैं, जिसमें रमुवापुर, किला, शीतलापुर, भैरमपुर, लौदरमा, बेलापरसुआ व भादी हैं। इन गाँवों की आबादी भी कुछ खास नही हैं,वही लकड़ी तस्कर इस गाँव के रमुवापुर, चिरकुवा व खैरीगढ़ के गांव से लगे घने जंगलों में पेड़ो की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं। पहले कभी वनांचल के रूप प्रसिद्ध इस वन में हरे भरे पेड़ो की जगह अब केवल ठूंठ ही बचे हुए हैं। यह ठूंठ इस बात की गवाही देते है,की किस कदर वन अमला अपने दायित्वों का निर्वहन नही कर पा रहा हैं। और तस्कर कैसे धड़ल्ले से लकड़ी की तस्करी पर आमादा है। तस्करों ने राष्ट्रीय पार्क
हिंसक वन्यप्राणियों की गाँवो में आमद,देती है गवाही…
क्षेत्र के निघासन व महेशपुर वनक्षेत्रों के किनारे बसे गांवों व जंगलों के किनारे जंगलों का सफायाकर उसमें खेती भी की जाने लगी हैं, जिससे जंगलों के घनत्व में कमी आने के कारण  हिंसक वन्य प्राणियों में ज्यादातर शेर, बाघ, लकड़बग्घा, हिरन सहित भालुओ का बसेरा हैं। यदा कदा हाथियों का झुंड भी उक्त बसे गांवों के क्षेत्र में विचरण करते पाया गया है, यह इस बात की गवाही देता हैं। गाँव वाले हाथियों और भालुओ से कितने प्रभावित हैं, बावजूद इसके क्षेत्र के संबंधित वन अमला पेड़ो की अवैध कटाई नही रोक पा रहा है, घने जंगलो में पेड़ो की कम होती तादाद के चलते अब वन्यजीव भी अपना रुख गाँवो की ओर कर रहे है।
जानकारों की माने तो 1980 से लेकर 90 तक जनपद के कई क्षेत्रों में हरे भरे पेड़ो की बेदम कटाई हुई थी। वह पहले कभी घना जंगल हुआ करता था, वह क्षेत्र अब मैदान में तब्दील होकर रह गया हैं। ऐसा नही है कि वर्तमान समय मे पेड़ नही काटे जा रहे है,वर्तमान समय मे भी बेशकीमती प्रजाति के हरे-भरे पेड़ अवैध कटाई के चपेट में हैं
दुधवा नेशनल पार्क का वनक्षेत्र 885 वर्ग किमी के दायरे में फैला हुआ हैं। जिसमें कहीं-कहीं जंगलों में गहरें पानी के कुण्ड भी हैं, जिसमें जलीय जीव-जन्तु का निवास हैं, उसमें भी शिकारी अवैध रुप से कछुआ व मछली का शिकार करते हैं। तथा वन महकमा भी इसके बारे में बखुबी जानता हैं। मामला जब अधिक उछल जाता हैं, तो यदाकदा शिकारियों को पकड़कर उनके ऊपर कारवाई कर देता हैं।
जानकर सूत्र बताते है कि हरियाली पर बट्टा लगाने का काम सरकार की वन अधिकार के तहत पट्टा देने की मुहिम ने ही कर दी थी। पार्क क्षेत्र के कई गाँव तो ऐसे हैं,जहाँ ग्रामीणों ने भूमि स्वामी बनने के मोह में ही हरे-भरे पेड़ काट लिए और अच्छे खासे घने जंगलों से हरे भरे पेड़ो को काटकर इन जंगलो को मैदान में तब्दील कर कब्जा जमा लिया वन माफियाओं तथा शिकारियों की काली छाया बनी रहती हैं। विश्व प्रसिद्ध दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र में बहुत से वेशकीमती वृक्ष तथा दुर्लभ प्रजाति के पशु-पक्षी विलुप्तता के कगार पर न हो, उसके लिए प्रशासन को कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। ऐसे में इन गाँवो में लकड़ी तस्करों के जमे जमाये जुगाड़ को जड़ से खत्म करने में बड़ी कार्यवाही की दरकार है।

लखीमपुर खीरी से ब्यूरो चीफ अनुराग पटेल की रिपोर्ट..
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