विलुप्त होती जा रही गन्ने की सदाबहार फसल,

गायब हो रही गुड़ की भीनी महक,

क्षेत्र में गन्ने के रकबे में आई कमी का कारण सरकार की गलत नीतियां


  भाऊँखेड़ी:गुड़ बनाता किसान


राजेश बनासिया,  भाऊँखेड़ी

 एक समय था जब इछावर ब्लॉक के कई गाँवो में गन्ने की जोरदार फसल रहलहाती थी गन्ने का रकबा अच्छा खासा हुआ करता था सर्दी के मौसम में जब कोसों दूर कोई गुड़ बनाने का कार्य हुआ करता था और जब कड़ाव में गुड़ पक जाता था तो उसकी महक से कोसों दूर बैठे हुए को भी भीना-भीना अहसाह हो जाता था कि कही दूर गुड़ बन गया है मगर अब ऐसी महक का आना मुश्किल ही होता जा रहा है  क्योंकि क्षेत्र में इनदिनों गन्ने का रकबा काफी कम होता जा रहा है कारण किसान को सही दाम नही मिलना। दूसरा यह कि सीहोर के शकर मिल का बन्द होना भी इसी कड़ी में शामिल हैं।क्योंकि जब सीहोर शकर फेक्ट्री चालू थी उस समय ब्लॉक के जाने माने गांव लसूड़ियाकांगर,पांगरा खाती, कांकरखेड़ा,भाऊँखेड़ी,मोगरा,गाँव तालाब,निपानिया आदि गांवों में गन्ने के रकबे भी ज्यादा हुआ करते थे इन गांवों के गुड़ की मीठास शहद को भी मात देती थी गुड़ का दाना मप्र के महानगरों मे विख्यात था और मंडी मे इछावर के नाम से बिकता था यहाँ गुड़ बनाने का कार्य भी कई महीनों तक चलता था मगर अब क्षेत्र में गन्ने के रकबे के सांथ गुड़ बनाने का काम भी बहुत कम हो गया है अगर यही हालत रहे तो जल्द ही क्षेत्र से गन्ने की सदाबहार फसल और वह गुड़ की भीनी खुशबू दूर कहीं खो जाएगी।

खास बात यह भी है कि इछावर क्षेत्र के जलस्रोत या तो सूखते चले गए या उनका जल स्तर काफी नीचे चला गया जबकि गन्ना फसल की सिंचाई के लिए काफी पानी चाहिए होता है। गर्मी के चार महिनों मे भी सिंचाई होना जरुरी है।गन्ने की फसल वर्ष मे एक बार पैदा होती है इस लिए किसान उस रकबे मे दूसरी फसल नहीं ले पाता उसे आर्थिक नुकसान सहना पड़ता है। इसके विपरीत यदि किसान को उसकी मेहनत के अनुरुप दाम मिलने लगे और सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध मुहैया कराए जाएं तो अब भी गन्ने की फसल इछावर  क्षेत्र मे लहलहाती देखी जा सकती है। गुड़ की भीनी खुशबू लौटाई जा सकती है।

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