भले ही बीजेपी देश में ‘400 पार’ और यूपी में ‘मिशन 80’ का नारा दे रही है. लेकिन उसे भी पता है कि पूर्वांचल अभी तक उसके लिए आसान नहीं रहा है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से लड़ने के बावजूद 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन यहां एक तरफा नहीं रहा.

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां तीन सीटों पर काफी मशक्कत के बाद जीती थी. वहीं पूर्वांचल इलाके में बीजेपी 5 सीट हार भी गई थी. 2022 विधानसभा चुनावों में कई जिलों में पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया था. इसलिए इलाके की आठ सीटें आज भी बीजेपी के लिए चिंता का सबब हैं.

जौनपुर लोकसभा सीट से भी 2019 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस सीट से बहुजन समाज पार्टी के श्याम सिंह यादव ने जीत हासिल की थी. 1989 से 2014 के बीच बीजेपी ने यहां से चार बार लोकसभा का चुनाव जीता था.इस बार बीजेपी ने मुंबई में पूर्वांचल के लोकप्रिय नेता कृपाशंकर सिंह पर दांव खेला है. पर उनका मुकाबला बाबू सिंह कुशवाहा से है जो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं. बाबू सिंह कुशवाहा बीएसपी में रहते हुए अतिपिछड़ों के कद्दावर नेता रहे हैं.

पिछले चुनाव में घोसी लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी के अतुल राय ने चुनाव जीता था. अतुल राय को 1,22,568 मतों के अंतर से जीत मिली थी. पर इस बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं. समाजवादी पार्टी से राजीव राय तो बहुजन समाज पार्टी से बालकृष्ण चौहान उम्मीदवार हैं.बालकृष्ण यहां से एक बार सांसद रह चुके हैं. एनडीए ने यहां से सुभासपा के अनिल राजभर को उम्मीदवार बनाया है. अनिल सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे हैं.

गाजीपुर लोकसभा सीट से 2019 का आम चुनाव बहुजन समाज पार्टी के अफजाल अंसारी ने जीता था. उन्हें अफजाल अंसारी ने 1,19,392 मतों के अंतर से हराया था. गाजीपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के मनोज सिन्हा तीन बार सांसद रह चुके हैं. इस बार मनोज सिन्हा के ही खास पारस नाथ राय को बीजेपी से टिकट मिला है. मनोज सिन्हा जबसे कश्मीर के राज्यपाल बने हैं तबसे उनके नाम और काम की काफी चर्चा है. 

2019 के आम चुनाव में आजमगढ़ सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ढाई लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी. यादव और मुस्लिम बहुल इस संसदीय सीट पर एमवाई फार्मूला काम करता रहा है. हालांकि अखिलेश के रिजाइन करने के बाद हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव को यहां से करारी हार मिली. और बीजेपी के प्रत्याशी भोजपुरी एक्टर और सिंगर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को जीत मिली थी.

लालगंज सीट सुरक्षित सीट है. 2014 में इस सीट से बीजेपी को विजय मिली थी. 2014 में बीजेपी की नीलम सोनकर यहां से जीत हासिल की थी. पर 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने एक साथ चुनाव लड़कर बीजेपी से यह सीट छीन ली थी.लालगंज लोकसभा सीट से 2019 का आम चुनाव बहुजन समाज पार्टी की संगीता आजाद जीती थीं.बीजेपी ने एक बार फिर अपनी पुरानी कैंडिडेट नीलम सोनकर पर ही भरोसा जताया है.बीएसपी ने यहां से डॉक्टर इंदू चौधरी को मैदान में उतारा है.समाजवादी पार्टी ने पुराने समाजवादी दरोगा सरोज पर भरोसा जताया है.

पिछली बार बीजेपी ने पूर्वांचल की चंदौली लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी. हालांकि, यहां जीत का अंतर भी ज्यादा नहीं था. चंदौली सीट से बीजेपी के डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय महज 13,959 मत से जीते थे.  वहीं, इससे पहले इसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वर्ष 2014 का आम चुनाव डॉ. पांडेय ने डेढ़ लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीता था.पर इस बार मुकाबल बेहद कड़ा है . समाजवादी पार्टी ने इस बार यहां से वीरेंद्र सिंह को टिकट दिया है.चंदौली लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार सतेंद्र कुमार मौर्य को बनाया है.

 यूपी में मछली शहर लोकसभा सीट पर सबसे कम अंतर रहा था. बीजेपी यह सीट महज 181 वोटों से जीतने में सफल रही थी.मछली शहर में  बीजेपी ने मौजूदा सांसद बीपी सरोज को उम्मीदवार बनाया है. बीपी सरोज के पास जीत की हैट्रिक बनाने का मौका है.

 बलिया में 2019 का चुनाव बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त ने मात्र 15,519 वोट से जीता था. शायद यही कारण है कि बीजेपी ने उनपर इस बार भरोसा नहीं जताया है. बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को कैंडिडेट बनाया है. उनके सामने सपा के सनातन पांडेय और बीएसपी के ललन सिंह यादव मैदान में हैं. 

Share To:

Post A Comment: