लौट आई दादा-दादी,नाना-नानी के जमाने की याद,
खूब बिक रहे मिट्टी  के बने बालागांव के कड़ले

राजेश बनासिया, भाऊँखेड़ी

मिट्टी के कड़ले और उसकी सौंधी खुशबू वाली रोटी लोगों को आज भी दादी-नानी के जमाने की याद दिला देती है यही कारण है कि कड़लों(मिट्टी के तवे) का क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है और अब बाजार मे कड़ले फिर से अपनेे बदले स्वरुप मे धड़ल्ले से बिकने लगे हैं लोगों मे बालागांव के कड़लों की मांग ज्यादा ही है क्योंकि उसमे बदले जमाने के सांथ विशेष प्रकार के हत्थे का प्रयोग भी किया जा रहा है।

इस समय भाऊँखेड़ी व आसपास के गांवों में महिलाओं में कड़ले खरीदने की होड़ सी लगी है क्योंकि ये जो कड़ले है वह नसरुल्लागंज के बालागांव के हैं और यहां ब्लॉक के गांवों में बालागांव के कड़लो की बहुत मांग होती है पहले क्षेत्र में बहुत से प्रजापति समाज के लोग इन्हें बनाते थे जो अब उन्होंने बनाना बन्द कर दिए जिससे भी गांवों में इन कड़लो की डिमांड बड़ी है इन कड़लो की खासियत यह है कि इनमें एक तरफ हत्था लगा रहता है जिससे इसे गैस,हीटर व मिट्टी के चूल्हे पर आसानी से रख सकते है ग्राम लसूड़ियाराम की सुमन बाई ने बताया कि हमारे यहाँ इस प्रकार के कड़ले नही मिलते तो हम हर बार ही इनसे जरूरत से ज्यादा कड़ले खरीद कर रख लेते है साल भर की बेफिक्री हो जाती है इन कड़लों की खासियत के बारे में खुद बालागांव के रामप्रसाद प्रजापति बताते है कि मै कई सालों से इन कड़लो को बेचने इधर आता हूँ  पहले सादे कड़ले बेचने आते थे मगर अब सभी घरों में गैस व इंडेक्शन चूल्हों ने जगह लेली है तो हमने भी अब कड़ले बनाने में एक अलग तकनीक का उपयोग किया है जिससे कि कड़ले को आसानी से गैस व हीटर पर रखा जा सके हमारे द्वारा बनाये गए कड़लों कि मांग नरसिंहगड़ तहसील के कई गांवों में भी है हम वहाँ भी कड़ले बेचने जाते हैं लोगों को मिट्टी के बन कड़ले फिर से रास आने लगे हैं क्योंकि इनसे बनी रोटियों के स्वाद ही अलgग होते हैं। कड़ले की रोटियाँ शीघ्र पच्य भी होती हैं।
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